समष्टि अर्थशास्त्र (Macroeconomics)
- यह आर्थिक सिद्धांत की वह शाखा है जो संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक इकाई के रूप में अध्ययन करता है।
- प्रो. कीन्स के अनुसार- "राष्ट्रीय तथा विश्वव्यापी आर्थिक समस्याओं का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत किया जाना चाहिए।" इस प्रकार समष्टि अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था का अध्ययन समग्र रूप से किया जाता है।
- उदाहरण के लिए, कुल राष्ट्रीय आय, कुल माँग, कुल पूर्ति कुल बचत, कुल विनियोग, पूर्ण रोजगार इत्यादि।
- विश्व में 1930 से पहले परंपरावादी अर्थशास्त्रियों की मान्यता थी कि 'अर्थव्यवस्था में सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है।'
- परंतु 1929-33 की विश्वव्यापी महामंदी ने अमेरिका व अन्य विकसित देशों के उत्पादन, आय व रोजगार में आई भारी गिरावट ने इस मान्यता को बदल दिया
- ऐसी गंभीर स्थिति ने अर्थशास्त्रियों को व्यष्टि की बजाय समष्टि स्तर पर सोचने को मजबूर कर दिया
- 1936 में इंग्लैंड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे० एम० केन्स ने अपनी पुस्तक 'रोजगार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत' प्रतिपादित किया जिसे केन्स का सिद्धांत या (समष्टि सिद्धांत) कहते हैं।
समष्टि अर्थशास्त्र में बुनियादी अवधारणाएँ
अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्र है जिसमे से दो महत्वपूर्ण है
1. पारिवारिक क्षेत्र
2. उत्पादन क्षेत्र
3. सरकारी क्षेत्र
4. सम्पूर्ण विश्व
चार क्षेत्र मे से दो महत्वपूर्ण है
1. पारिवारिक क्षेत्र
2. उत्पादन क्षेत्र
अर्थव्यवस्था में मूल आर्थिक गतिविधियाँ
1. उत्पादन
- उत्पादन गतिविधियों में वस्तु और सेवाओं के बनाने को सम्मिलित किया जाता है। जिससे इनकी मूल्यों में वृद्धि होती है
2. उपभोग
- वस्तु और सेवाओं का उपभोग मनुष्य अपनी जरुरतो और इच्छाओ को पूरा करने के लिए करता है
3. निवेश ( पूंजी निर्माण )
- एक वर्ष में पूंजीगत वस्तुओं के स्टॉक में वृद्धि पूंजी निर्माण अथवा निवेश कहलाती है।
वस्तुएँ
अर्थशास्त्र में वस्तुएँ वे हैं जो मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करती हैं और उपयोगिता प्रदान करती हैं।
वस्तुओ का वर्गीकरण
1. मध्यवर्ती वस्तुएँ
2. अंतिम वस्तुएँ
- उपभोग वस्तुएँ या उपभोक्ता वस्तुएँ
- पूंजीगत वस्तुएँ
1. मध्यवर्ती वस्तुएँ
- जो वस्तु अभी तक उत्पादन की सीमा रेखा को पार नहीं कर पाए हैं।
- वस्तु में मूल्य अभी भी जोड़ा जाना बाकी है।
- वस्तु जो अभी तक अपने अंतिम उपयोग के लिए तैयार नहीं हैं
- वे वस्तु जो एक फर्म द्वारा दूसरी फर्म से खरीदे जाते हैं।
2. अंतिम वस्तुएँ
ये वे वस्तुएं हैं जो उत्पादन की सीमा रेखा पार कर चुकी हैं और अपने अंतिम उपयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग के लिए तैयार हैं।
अंतिम उपयोगकर्ता
I. उत्पादक
अंतिम उत्पादक वस्तुएँ उत्पादकों द्वारा निवेश के लिए उपलब्ध होती है जैसे मशीने ,वाहन और उपकरण
II. उपभोक्ता
अंतिम उपभोक्ता वस्तुएँ उपभोक्ताओं द्वारा अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए खरीदी जाती हैं जिन्हें हम चार भागों में बाट सकते है।
- टिकाऊ वस्तुएं :- वे वस्तुएं होती है जिनका उपयोग कई वर्षों तक किया जाता है जैसे :- टी.वी , कार
- अर्ध-टिकाऊ :- यह वह वस्तुएं होती है जिनका प्रयोग एक वर्ष या उससे कुछ और समय के लिए किया जाता है जैसे :- कपड़े, फर्नीचर
- गैर टिकाऊ वस्तुएँ :- यह ऐसी वस्तुएं होती है जिनका केवल एक ही बार प्रयोग किया जाता है जैसे :- इंजेक्शन
- सेवाएँ :- सेवाएं वे गैर भौतिक वस्तुएं होती है जो मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती है जैसे :- डॉक्टर, वकील
उत्पादन के कारक
अर्थशास्त्र में, किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन में जिन चीजों की आवश्यकता होती है उन्हें उत्पादन के कारक कहते हैं।
- भूमि :- वे संसाधन जो प्रकृति से निशुल्क प्राप्त होते है। जैसे :- नदिया , जंगल
- श्रम :- जब कोई व्यक्ति शारीरिक या मानसिक तोर पर किसी कार्य में योगदान देता है तो उसे श्रम कहते है।
- पूंजी :- मानव निर्मित हर वह पदार्थ जिसका प्रयोग उत्पादन के लिए किया जाता है उन्हें पूंजी कहते है जैसे उपकरण, कारखाने
- उद्यमिता :- वे लोग जो बाजार के लिए व्यवसाय और उत्पादन प्रक्रिया में लगे रहते है इन्हें मालिक या प्रबंधक भी कहते है।
उत्पादन कारक एक अर्थव्यवस्था में कारक सेवा का काम करते है जिससे कारक आय प्राप्त होती है
आय
वह धन है जो आपको अपने श्रम या उत्पादों के बदले प्राप्त होती है।
1. भूमि से किराया
2. श्रम से वेतन
3. पूंजी से ब्याज
4. उद्यमिता से लाभ
आय के प्रकार
1. कारक आय (Factor Income)
- उत्पादन में कारक सेवाएँ देने के बदले उत्पादन के साधनों को जो भुगतान किया जाता है उसे कारक आय कहते हैं।
- जैसे लगान, मजदूरी, ब्याज, लाभ कारक आय हैं।
2. हस्तांतरण आय (Transfer Income)
- वे भुगतान जो उत्पादन में योगदान दिए बिना प्राप्त होते हैं, हस्तांतरण आय कहलाती हैं।
- यह भुगतान एकतरफा भुगतान होते हैं, क्योंकि इन्हें प्राप्त करने वाले, बदले में कोई उत्पादक सेवा या वस्तु नहीं देते हैं।
- हस्तांतरण आय के उदाहरण हैं - वृद्धावस्था पेंशन, छात्रवृत्ति, बेरोजगारी भत्ता, अकाल-भूकंप-बाढ़ आदि में सहायता।
प्रवाह एवं स्टॉक अवधारणाएँ
1. प्रवाह
- प्रवाह एक ऐसी मात्रा है जिसे समय अवधि के संदर्भ में मापा जाता है।
- इसकी व्याख्या, समयावधि, जैसे- घंटे, दिन, सप्ताह, मास, वर्ष आदि के आधार पर की जाती है।
- उदाहरण के लिए एक व्यक्ति की आय प्रवाह है चाहे वह दैनिक हो साप्ताहिक या फिर मासिक।
2. स्टॉक
- स्टॉक एक ऐसी मात्रा है जो किसी निश्चित समय बिंदु पर मापी जाती है।
- इसकी व्याख्या, समय के किसी बिंदु, जैसे 4 बजे, सोमवार, प्रथम जुलाई आदि के आधार पर की जाती है।
- उदाहरणार्थ राष्ट्रीय पूँजी एक स्टॉक या भंडार है जो एक देश के अधिकार में किसी निश्चित तिथि को मशीनों, इमारतों, औजारों, कच्चामाल आदि के स्टॉक के रूप में होता है।
निवेश
अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ाने वाली भौतिक पूँजी के स्टॉक में वृद्धि को निवेश या पूँजी निर्माण कहते हैं। निवेश के दो घटक हैं
1. स्थायी निवेश
- स्थिर निवेश से तात्पर्य एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादक द्वारा अचल संपत्तियों के स्टॉक में वृद्धि से है।
- जैसे संयंत्र और मशीनरी
2. मालसूची निवेश
- एक समय पर, उत्पादक जो स्टॉक रखते हैं उसे मालसूची निवेश कहते है
- जैसे तैयार माल, अर्ध-तैयार माल या कच्चा माल।
सकल निवेश
अंतिम उत्पाद का वह भाग जो पूँजीगत वस्तुओं के रूप में निर्मित है, अर्थव्यवस्था का सकल निवेश कहलाता है।
मूल्यह्रास
किसी कारण अचल परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट को मूल्यह्रास कहते हैं।
मूल्यह्रास के कारण
- सामान्य टूट-फूट के कारण स्थिर पूंजीगत वस्तुओं के मूल्य में गिरावट
- अपेक्षित अप्रचलन या अप्रत्याशित अप्रचलन
शुद्ध (निवल) निवेश
सकल निवेश में से मूल्यह्रास घटाने पर शुद्ध निवेश प्राप्त होता है।
आय का चक्रीय प्रभाव
देश का उत्पादन, आय और व्यय के रूप में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में एक चक्र की भांति घूमते है क्योंकि एक क्षेत्र का व्यय दूसरे क्षेत्र की आय होती है।
आय के चक्रीय प्रवाह के दो मूल सिद्धांत -
- विनिमय की प्रक्रिया में, विक्रेताओं (उत्पादकों) को उतनी राशि मिलती है जितनी उपभोक्ता (क्रेता) खर्च करते हैं।
- वस्तुएँ और सेवाएँ एक दिशा में प्रवाहित होती हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए की गई मौद्रिक अदायगियाँ विपरीत दिशा में प्रवाहित होती हैं जिससे चक्रीय प्रवाह बन जाता है।
1. वास्तविक प्रवाह
उत्पादन के साधनों का परिवार से व्यावसायिक फर्मों की ओर तथा व्यावसायिक फर्मों से उपभोग हेतु वस्तुओं व सेवाओं का परिवार की ओर प्रवाह वास्तविक प्रवाह कहलाता है।
2. मौद्रिक प्रवाह
व्यावसायिक फर्मों से साधन भुगतान का परिवार की ओर तथा परिवार से उपभोग व्यय के रूप में व्यावसायिक फर्मों की ओर प्रवाह मौद्रिक प्रवाह कहलाता है।
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